Kavita Jha

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आत्महत्या एक डरावनी प्रेम कहानी # लेखनी धारावाहिक प्रतियोगिता -09-Sep-2022

भाग-18
साधना का भोलापन और मासूम चेहरा सार्थक को अपनी और आकर्षित कर रहा है, वो दीपा को भूल नहीं पाता है जो दीपा की आत्मा यही चाहती है। फिर भी वो साधना को सिद्धार्थ से दूर रखने की नई योजनाएं बनाती रहती है। सिद्धार्थ की बड़ी भाभी के शरीर में प्रवेश कर दीपा की आत्मा ने ही साधना को धक्का दिया जिससे उसका सिर दीवार से टकराने ही वाला था कि सिद्धार्थ ने बचा लिया । 
सिद्धार्थ की बड़ी भाभी और छोटी बहन साधना को बिल्कुल पसंद नहीं करती।

अब गतांक से आगे...

सावन जो कि साधना का प्रेमी था और उसने खुद को दोषी मानते हुए आत्महत्या कर ली थी  जिसके बारे में साधना कभी जान ही नहीं पाई। 
दीपा की तरह ही उसकी आत्मा भी अपनी प्रेमिका साधना को ढूंढते हुए सिद्धार्थ के घर में आ गई। 

सिद्धार्थ को जो साधना को देखकर प्यार उमड़ा था वास्तव में सिद्धार्थ के अंदर सावन की आत्मा ने प्रवेश कर लिया था।
जब सावन ने देखा दीपा की आत्मा बार बार साधना को परेशान कर रही है उसे मारना चाहती है और इस नए घर परिवार में उसे समझने वाला और बचाने वाला कोई नहीं है।
 
सिद्धार्थ तो अपनी ही दुनिया में खोया रहता है, दीपा के साथ बिताए हुए पलों में जीता है और सिर्फ परिवार की खुशी के लिए अपने सपनों को कुर्बान कर रहा है।उसकी नौकरी और शादी दोनों सिर्फ परिवार के लिए है। उसे साधना से कोई मतलब नहीं है। जब साधना केंचुओं को देखकर बेहोश हुई तो सिद्धार्थ अपने कमरे में सिगरेट के कश भर रहा था।उसकी भतीजियों ने कई बार कहा ,"काकू जल्दी चलिए काकी बेहोश हो गई"
,, पर उस पर तो जैसे कोई असर ही नहीं पड़ा था।वो अपने कमरे की खिड़की के पास खड़ा हो एक के बाद एक सिगरेट फूंकता ही रहा।
 
सावन को दीपा पर बहुत गुस्सा आ रहा था पर वो लड़ना नहीं चाहता था…. किसी से भी...
... ना ही किसी इंसान से ना ही आत्मा से।
 उसने तो खुद से ही लड़ते हुए ही अपनी कलाई की नश काट मौत को गले लगा लिया था।
,,पर समय से पहले मौत के बाद क्या होता है इससे वो पूर्ण रूप से अनभिज्ञ था।

वो बैचेन हो कभी साधना को उठाने की कोशिश करता तो कभी सिद्धार्थ को समझाने की पर उसे इसके लिए किसी शरीर की जरूरत थी। उसने अपनी शक्ति द्बारा सिद्धार्थ के शरीर में प्रवेश कर लिया और अपनी साधना को बचाने के लिए दौड़ पड़ा।

वह सिद्धार्थ के अंदर सावन ही था जिसे शायद साधना भी महसूस कर रही थी तभी उसने उस अजनबी सिद्धार्थ को अपने बचपन का डर जो अभी तक उसे परेशान कर रहा है बता दिया और उसकी गोदी में सिर रख चैन से सो गई।

दो प्रेमी की आत्माएं एक दूसरे को पहचान लेती हैं चाहे वो किसी भी शरीर का रूप धारण कर लें।

जब साधना ने खुद को सिद्धार्थ की बाहों में पाया वो अपने सावन को महसूस कर रही थी।
"सावन कहां थे तुम क्यों मुझे छोड़ कर चले गए। मैं सिर्फ और सिर्फ तुम्हारी हूं।किसी और की कभी नहीं हो सकती।"
 दोनों एक दूसरे के आगोश में समाए रहे।दो आत्माओं का मिलन हो रहा था।

,,तभी शीला जी खुद आई और दरवाजे के बाहर से ही आवाज लगाई बिटवा मेहमान आ चुके हैं सब तुझे ही खोज रहें हैं जल्दी आ नीचे और कनिया को भी लेकर  आ।

साधना अपनी सास की आवाज सुनकर खुद को सिद्धार्थ के शरीर से अलग करती है। 
"मांँ बुला रही हैं हम दोनों को और अब मेरी तबीयत भी ठीक लग रही है। आप भी तैयार हो जाईए और मैं भी जल्दी से तैयार हो जाती हूँ।"

इधर गुड़िया और बड़ी भाभी साधना के मायके से आए बक्सों को खोल कर उसमें से सबसे सुंदर नेवी ब्लू कलर का लंहगा गुड़िया ने पहन लिया जो सावन ने उसे उसी दिन दिया था जब उसके भाई को दोनों के प्रेम प्रसंग के बारे में पता चला और उसके बाद उसने सावन को खूब पीटा। साधना को भी खींचते हुए घर ले आया। 

यह लंहगा सावन की आखिरी निशानी के रूप में वो हमेशा अपने पास रखना चाहती थी इसलिए उसने भाभी से बोला कि यह उसकी सहेली प्रीत ने उसे दिया है मेरे कपड़ों के साथ इसे भी रख देना।

गुड़िया उस लंहगे को पहन खुशी से झूम रही थी और खुद को सीसे में देख रही थी। कितना मंहगा होगा । इसमें हम कितने खूबसूरत लग रहे हैं। आज तो पतिदेव जी हमको पहचान ही नहीं पाएंगे और सभी औरतें तो मेरी खूबसूरती और इस लंहगे से जल कर राख हो जाएंगी।
दिल्ली के कपड़ों की बात ही निराली है।अब जब भी भाई भाभी दिल्ली जाएंगे तो मेरे लिए अच्छे अच्छे कपड़े लाएंगे।

"बड़ी सुंदर लग रही है ननदो जी जरा हमको देख कर भी तो बताओ कईसे लग रहें हैं इस बनारसी साड़ी में।"

"वाह भौजी बड़ी जच रहीं हैं आप तो। अरे ई सारा कपड़ा हम लोगों पर ही जंचेगा।ऊ कलूठी तो कुछो पहने वैसी ही बदसूरत ही लगेगी।"
 
दोनों साधना के कपड़े पहन जैसे ही अपना मेकअप करवाने के लिए पार्लर वाली जो उनके घर में साधना को तैयार करने आई थी उसके पास जा ही रहे थे कि तभी दीपा ने उन्हें मजा चखाने के लिए एक दूसरे के कपड़ों से बांध दिया और तमाशा देखने के लिए एक कोने में खड़ी रही।

चाय की ट्रे लिए पार्टी की कैटरिंग संभालने वालों की तरफ से आया एक वटर उन दोनों के बीच से गुजरा और दोनों के ऊपर सारी चाय तो गिर ही गई साथ में दोनों लुढ़क गई।उनके चेहरे पर रंगोली के रंग छप गए। जो सिद्धार्थ की भतीजियों ने बनाए थे।

साधना ने जब अपने बक्से से वो लंहगा जो उसे सावन ने दिया था गायब देखा और साथ ही मौसी ने साधना के लिए गुलाबी बनारसी साड़ी भेजी थी वो भी गायब देखी तो हैरान थी। पता नहीं कहाँ चले गए मेरी साड़ी और लंहगा। कपड़ों का बक्सा देखकर भी ऐसा लग रहा था जैसे किसी ने जल्दबाजी में पैक किया हो।

शीला जी ने उसे सुबह ही कहा था ..
"तुम मायके का नहीं आज यहाँ के हमारे लिए ही कपड़े पहनोगी।"
बड़े जेठजी ने एक हल्की सी पीले रंग की साड़ी दी थी।जो साधना के यहाँ कामवाली भी नहीं पहनती थी। उसे भी पहनकर बैठ गई।


 क्रमश:

आपको यह कहानी पसंद आ रही है यह जानकर खुशी हुई। 
इस कहानी से जुड़े रहने के लिए मेरे प्रिय पाठकों का तहे दिल से शुक्रिया। आप इसी तरह कहानी से जुड़े रहिए और अपनी समीक्षा के जरिए बताते रहिए कि आपको कहानी कैसी लग रही है।

कविता झा'काव्या कवि'
#लेखनी

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2 Comments

Khushbu

05-Oct-2022 03:53 PM

Nice

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Gunjan Kamal

29-Sep-2022 08:21 PM

👏👌🙏🏻

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